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स्वामीनाथन आयोग क्या है?
किसानों के हित के लिए स्वामीनाथन आयोग का गठन 18 नवंबर, 2004 को किया गया था। इस आयोग का वास्तविक नाम "राष्ट्रीय किसान आयोग" है और इसके अध्यक्ष एम. एस. स्वामीनाथन हैं। जिसके कारण उन्हीं के नाम पर इस आयोग का नाम स्वामीनाथन आयोग पड़ गया। इसमे किसानों की मांग है कि केंद्र सरकार स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करे, जिससे किसानों को उनका हक मिल सके। उन्होंने किसानों के हालात सुधारने और कृषि को बढ़ावा देने के लिए सरकार से सिफारिशें की थीं, लेकिन अब तक उनकी ये सिफारिशें लागू नहीं की गई हैं। हालांकि केंद्र और राज्य सरकारों का कहना है कि उन्होंने आयोग की सिफारिशों को लागू कर दिया है, लेकिन वास्तविकता तो यही है कि अभी तक इसे पूरी तरह से लागू ही नहीं किया गया है। हमारे देश के किसान बार-बार आंदोलनों के जरिए स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग करते रहे हैं।
कोन है स्वामीनाथन ?
एम. एस. स्वामीनाथन को भारत में हरित क्रांति का जनक भी माना जाता है। वो पहले ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने सबसे पहले गेहूं की एक बेहतरीन किस्म को पहचाना। जिसके कारण तब से भारत में गेहूं उत्पादन में भारी वृद्धि हो रही है। स्वामीनाथन को कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित भी किया जा चुका है, जिसमें पद्मश्री (1967), पद्मभूषण (1972), पद्मविभूषण (1989), मैग्सेसे पुरस्कार (1971) और विश्व खाद्य पुरस्कार (1987) महत्वपूर्ण हैं।
स्वामीनाथन आयोग की मूल सिफारिशें।
रोजगार सुधार।
स्वामीनाथन आयोग ने खेती से जुड़े हर प्रकार के रोजगारों को बढ़ाने की बात कही थी। आयोग ने कहा था कि वर्ष 1961 में कृषि से जुड़े रोजगार में 75 फीसदी लोग लगे थे, जो कि 1999 से 2000 तक घटकर 59 फीसदी हो गया। इसके साथ ही आयोग ने किसानों के लिए "नेट टेक होम इनकम" को भी तय करने की बात कही थी।
भूमि बंटवारा।
स्वामीनाथन आयोग ने अपनी सिफारिश में भूमि बंटवारे को लेकर चिंता जताई थी। इसमें कहा गया था कि 1991-92 में 50 फीसदी ग्रामीण लोगों के पास देश की सिर्फ तीन फीसदी उपजाऊ जमीन थी, जबकि कुछ लोगों के पास ज्यादा जमीन थी। आयोग ने सर्कार को इसकी सही व्यवस्था की जरूरत बताई थी।
भूमि सुधार।
बंजर और बेकार पड़ी और अतिरिक्त जमीनों की सीलिंग और बंटवारे की भी सिफारिश की गई थी। इसके साथ ही खेतीहर जमीनों के गैर कृषि इस्तेमाल पर भी चिंता जताई गई थी। इसमें जंगलों और आदिवासियों को लेकर भी विशेष नियम बनाने की बात कही गई थी।
सिंचाई सुधार।
सिंचाई व्यवस्था को लेकर भी स्वामीनाथन आयोग ने गहरी चिंता जताई थी। साथ ही सलाह दी थी कि सिंचाई के पानी की उपलब्धता सभी के पास होनी चाहिए(नलकूप, नहर, ताल )। इसके साथ ही पानी की सप्लाई और वर्षा-जल के संचय पर भी जोर दिया गया था। आयोग ने पानी के स्तर को सुधारने पर जोर देने के साथ ही "कुआं शोध कार्यक्रम" शुरू करने की बात भी कही थी।
उत्पादन सुधार।
स्वामीनाथन आयोग का कहना था कि कृषि में सुधार की आवश्यकता है। कृषि में लोगों की भूमिका को बढ़ाना होगा। साथ ही आयोग ने कहा था कि कृषि से जुड़े सभी कामों में "जन सहभागिता" की जरूरत होगी, चाहे वह सिंचाई हो, जल-निकासी हो, भूमि सुधार हो, जल संरक्षण हो या फिर सड़कों और कनेक्टिविटी को बढ़ाने के साथ शोध से जुड़े अन्य काम हों।
खाद्य सुरक्षा।
स्वामीनाथन आयोग ने समान जन वितरण योजना की सिफारिश भी की थी। इसमें पंचायत की मदद से पोषण योजना को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने की भी बात कही गई थी। इसके अलावा "स्वयं सहायक समूह" बनाकर खाद्य एवं जल बैंक बनाने की बात भी इसमें कही गई थी।
किसान आत्महत्या रोकना।
किसानों की बढ़ती आत्महत्या को लेकर भी आयोग ने चिंता जताई थी। स्वामीनाथन आयोग ने ज्यादा आत्महत्या वाले स्थानों को चिह्नित कर वहां पर सरकार द्वारा विशेष सुधार कार्यक्रम चलाने की बात कही थी। इसके अलावा सभी तरह की फसलों के बीमा की जरूरत बताई गई थी। साथ ही आयोग ने कहा था कि किसानों के स्वास्थ्य को लेकर खास ध्यान देने की जरूरत है। इससे उनकी आत्महत्याओं में कमी आएगी।
ऋण और बीमा।
स्वामीनाथन आयोग का कहना था कि ऋण प्रणाली की पहुंच सभी तक होनी चाहिए। फसल बीमा की ब्याज-दर 4 फीसदी/प्रतिशत होनी चाहिए। किसानों के कर्ज वसूली पर रोक लगाई जाए। साथ ही "कृषि जोखिम फंड" भी बनाने की बात आयोग ने की थी। पूरे देश में फसल बीमा के साथ ही एक कार्ड में ही फसल भंडारण और किसान के स्वास्थ्य को लेकर व्यवस्थाएं की जाएं। इसके अलावा मानव विकास और गरीब किसानों के लिए विशेष योजना शुरू करने की बात कही गई थी।
वितरण प्रणाली में सुधार।
वितरण प्रणाली में सुधार को लेकर भी स्वामीनाथन आयोग ने सिफारिश की थी। इसमें गांव के स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक पूरी व्यवस्था का ढांचा त्यार किया गया था। इसमें किसानों को फसलों की पैदावार को लेकर सुविधाओं को पहुंचाने के साथ-साथ विदेशों में फसलों को भेजने की व्यवस्था की बात कही गई थी। साथ ही फसलों के आयात और उनके भाव पर नजर रखने की व्यवस्था बनाने की भी सिफारिश की गई थी।
प्रतिस्पर्धा का माहौल बनाना।
स्वामीनाथन आयोग ने किसानों में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने की बात भी कही है। इसके साथ ही अलग-अलग फसलों को लेकर उनकी गुणवत्ता और वितरण पर विशेष नीति बनाने को कहा था। साथ ही स्वामीनाथन आयोग ने फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को बढ़ाने की सिफारिश भी की थी।
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Very nice...
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