इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का इतिहास।
आगे बढ़ने से पहले जान लेते हैं ईवीएम का इतिहास। EVM/Electronic Voting Machine का आविष्कार साल 1980 में "M.B.Hanifa" के द्वारा किया गया था। इस मशीन को उन्होंने "इलेक्ट्रॉनिक संचालित मतगणना मशीन" के नाम से 15 अक्तूबर 1980 को पंजीकृत/Registered करवाया था। एकल सर्किट का उपयोग कर "M.B.Hanifa" द्वारा बनाये गये डिजाइन को भारत के तमिलनाडु राज्य के 6 शहरों में आयोजित सरकारी प्रदर्शनियों में जनता के लिए प्रदर्शनी हेतु इसे रखा गया था।
What is EVM?
Election Commission of India/भारत निर्वाचन आयोग द्वारा साल 1989 में "Electronics Corporation of India Limited/इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड" के सहयोग से भारत में EVM/ईवीएम बनाने की शुरूआत की गई थी। EVM/ईवीएम के औद्योगिक डिजाइनर आईआईटी बॉम्बे/IIT Bombay के संकाय सदस्य/Faculty Members थे।
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ईवीएम/इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की संरचना और तकनीक।
किसी भी ईवीएम में दो भाग होते हैं - नियंत्रण इकाई/Control Unit और मतदान इकाई/Voting Unit। ईवीएम के दोनों भाग एक पांच मीटर लंबे तार से जुड़े होते हैं। नियंत्रण इकाई/Control Unit नियुक्त किये गए अधिकारी" यानि "मतदान अधिकारी" के पास रहता है। जबकि मतदान इकाई/Voting Unit को मतदान कक्ष के अंदर रखा जाता है। मतदाता को मत-पत्र जारी करने के बजाय नियंत्रण इकाई/Control Unit के पास बैठा अधिकारी मतदान बटन/Ballot Button को दबाता है। इसके बाद मतदाता मतदान इकाई/Voting Unit पर अपने पसन्द के किसी भी उम्मीदवार के नाम और चुनाव चिह्न के सामने बने नीले बटन को दबाकर मतदान करता है। चूँकि यह इलेक्ट्रॉनिक मशीन है इसलिए इसे चलने के लिए बिजली की भी जरूरत होती है, इसलिए ईवीएम में 6 वोल्ट/Volt की एक साधारण बैटरी रखी गई है, जिसके कारण ये मशीन चलती है।
कैसे काम करती है ईवीएम।
इस मशीन में एक उच्च तकनीक युक्त सॉफ्टवेयर काम करता है जो मशीन के रिकॉर्ड को सही रखता है। इस सॉफ्टवेयर में गड़बड़ी की कोई गुंजाइस नहीं होती। एक बार मतदान बटन दबाने के बाद ये मशीन स्वत ही लॉक हो जाती है, जब तक मतदान अधिकारी नियंत्रण इकाई/Control Unit से आगे मतदान के लिए बटन नहीं दबाता तब तक दूसरा वोट नहीं डाला जा सकता। ईवीएम का निर्माण हो जाने के बाद निर्माता सहित कोई भी इस मशीन में बदलाव नहीं कर सकता है। इस मशीन की खास बात ये भी है की यदि कोई व्यक्ति एक साथ दो बटन दबाता है तो उसका मतदान दर्ज नहीं होता है। इस प्रकार ईवीएम मशीन "एक व्यक्ति, एक वोट" के सिद्धांत पर काम करती है। ईवीएम/इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन आजकल मैन्युअल और ऑटोमेटिक दोनों तरह की होती हैं।
ईवीएम/इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में अधिकतम 64 उम्मीदवारों के नाम शामिल किए जा सकते हैं, और इसमें में एक बार में अधिकतम 3840 मतों को रिकॉर्ड किया जा सकता है(नई मशीनों में इस क्षमता को बढ़ाया भी जा सकता है)। एक ईवीएम में ऐसे 4 इकाइयों को जोड़ा जा सकता है, प्रत्येक मतदान इकाई/Ballot Unit में 16 उम्मीदवारों का नाम शामिल रहता है। यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र में 64 से अधिक उम्मीदवार होने की परिस्थिति में मतदान के लिए पारंपरिक "मतपत्र या बॉक्स विधि" का प्रयोग किया जा सकता है।
मतदान के दिन आखिरी मतदाता द्वारा वोट डालने के पश्चात् नियंत्रण इकाई/Control Unit का अधिकारी इसके बंद/Close बटन को दबा देता है। इस बटन को बंद कर देने के बाद ईवीएम में कोई भी वोट दर्ज नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा, चुनाव की समाप्ति के बाद मतदान इकाई को नियंत्रण इकाई से अलग कर दिया जाता है। मतगणना के दौरान इस मशीन का परिणाम/Result बटन दबाने पर परिणाम को अंकों में स्क्रीन पर दिखती है।
निर्वाचन आयोग के अनुसार आगामी चुनाव में पहली बार "मतदान इकाई" पर उम्मीदवारों के नाम और चुनाव चिह्न के साथ उनके फोटो भी शामिल होंगे।
भारत में पहली बार कब इस्तेमाल हुआ ईवीएम का?
हमारे देश में ईवीएम/इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का पहली बार इस्तेमाल साल 1982 में केरल के सत्तर-पारुर विधानसभा क्षेत्र में किया गया था। साल 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद से भारत में प्रत्येक लोकसभा और राज्य-विधानसभा चुनाव में मतदान की प्रक्रिया पूरी तरह से ईवीएम/इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन द्वारा ही संपन्न होती आ रही है। आजकल तो EVM का प्रयोग नगरपालिका, जिला परिषद्, ब्लॉक समिति, ग्राम पंचायत के चुनाव में भी होने लगा है।
भारत द्वारा ईवीएम का विदेशों में भी निर्यात होता है।
हमारे देश में तैयार ईवीएम/इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन नेपाल, भूटान, नामीबिया, फिजी और केन्या जैसे कई और भी देशों में प्रयोग की जाती हैं। साल 2014 में नामीबिया में संपन्न राष्ट्रपति चुनावों के लिए भारत में निर्मित 1700 नियंत्रण इकाई/Control Unit और 3500 मतदान इकाई/Voting Unit का आयात किया गया था। इसके अलावा कई अन्य एशियाई और अफ्रीकी देश भारतीय ईवीएम को खरीदने के लिए आवेदन कर चुके हैं।
ईवीएम/इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के प्रयोग के फायदे।
- एक अनुमान के मुताबिक ईवीएम मशीन के प्रयोग के कारण भारत में एक राष्ट्रीय चुनाव में लगभग 10,000 टन मतपत्र बचाया जाता है।
- वर्तमान में एक एम3 EVM की लागत लगभग 17 हजार रुपये आती है, लेकिन भविष्य में इस निवेश के माध्यम से मत-पत्र की छपाई, उसके परिवहन और भंडारण, संरक्षण तथा इनकी गिनती के लिए कर्मचारियों को दिए जाने वाले मेहनताने के रूप में खर्च होने वाले लाखों रूपए की बचत भी की जा रही है।
- पारम्परिक मत-पत्र की तुलना में ईवीएम/इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन द्वारा मतगणना बहुत ही तेजी से होती है।
- ईवीएम मशीनों को मतपेटियों की तुलना में आसानी से एक जगह से दूसरे जगह ले जाया जाता है, क्योंकि यह हल्का और पोर्टेबल होता है।
- ईवीएम मशीनों के द्वारा चूंकि एक ही बार मत डाला जा सकता है, इसलिए इसमें फर्जी मतदान में बहुत ज्यादा कमी दर्ज की गई है।
- ईवीएम/इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की खास बात ये भी है की इसमें निरक्षर/अनपढ़ लोगों को भी मत-पत्र प्रणाली की तुलना में ईवीएम मशीन के द्वारा मतदान करने में आसानी होती है।
- मतदान होने के बाद ईवीएम मशीन को बंद करने से पहले मशीन की मेमोरी में ऑटोमेटिक ही परिणाम स्टोर हो जाते हैं।
- ईवीएम का नियंत्रण इकाई/Control Unit मतदान के परिणाम को दस साल से भी अधिक समय तक अपनी मेमोरी में सुरक्षित रख सकता है।
- ईवीएम मशीन में केवल मतदान और मतगणना के समय में मशीनों को सक्रिय करने के लिए बैटरी की आवश्यकता होती है, और जैसे ही मतदान खत्म हो जाता है तो बैटरी को बंद कर दिया जाता है। उसके बाद जब इनमे से गिनती करनी हो तभी इनको ऑन किया जाता है।
- एक भारतीय ईवीएम को काम से काम लगातार15 साल तक उपयोग में लाया जा सकता है। उसके बाद का प्रयोग इसकी कंडीशन पर निर्भर करता है। साथ ही नई मशीन में किये गए बदलावों पर भी निर्भर करता है।
मतदान के बाद ईवीएम की सुरक्षा।
किसी भी चुनाव में प्रयोग करने से पहले और चुनाव के बाद प्रत्येक ईवीएम को सुरक्षा एजेंसियों की कड़ी निगरानी में रखा जाता है। वोट डलने के बाद शाम को चुनाव हेतु लगाए गए अधिकारीयों की मौजूदगी में मतदान अधिकारी इस मशीन को सील बंद करता है। हर ईवीएम को एक खास कागज से सील किया जाता है, ये कागज भी करंसी नोट की तरह ही खास तौर से सीलिंग के लिए ही बनाये जाते हैं। करंसी नोट की ही तरह हर कागज़ के ऊपर एक खास नंबर और कोड अंकित होता है। कागजों से सील करने के बाद हर मशीन के परिणाम वाले हिस्से में स्थित छेद को धागे की मदद से बंद किया जाता है। इसके बाद कागज पर गर्म लाख से एक खास पीतल की सील लगा कर बंद किया जाता है। सीलिंग होने के बाद हर ईवीएम को कड़ी सुरक्षा में किसी भी निश्चित सरकारी जगह स्ट्रांग रूम/Strong Room में रखा जाता है। बहुत ही कड़े पहरे के साथ इन मशीनों से मतगणना की जाती है।
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