वास्तु शास्त्र अनुसार दिशा ज्ञान जाने। इनके महत्व को समझें। Vastu Disha Gyan - LS Home Tech

Thursday, December 12, 2019

वास्तु शास्त्र अनुसार दिशा ज्ञान जाने। इनके महत्व को समझें। Vastu Disha Gyan

वास्तु यानि निर्माण कला भवन निर्माण कला में अहम् योगदान रखती है। इस कला के अनुसार आपको दिशाओं का सम्पूर्ण ज्ञान होना जरुरी है। इन्ही दिशाओं के ज्ञान को ही वास्तु कहते हैं। यह भारतवर्ष की एक ऐसी प्राचीन पद्धति का नाम है, जिसमें दिशाओं को ध्यान में रखकर भवन निर्माण/Construction और उसकी आंतरिक सज-सज्जा/Interior Designing की जाती है। ऐसा माना जाता है कि वास्तु के अनुसार भवन निर्माण करने से घर-परिवार में खुशहाली आती है।
वास्तु शास्त्र अनुसार दिशा ज्ञान

वास्तु शास्त्र अनुसार दिशा ज्ञान जाने। इनके महत्व को समझें।
वास्तु अनुसार निर्माण में दिशाओं का बड़ा ही महत्व माना गया है। अगर आपके घर में गलत दिशा में कोई निर्माण कार्य होगा, तो उससे आपके परिवार को किसी न किसी तरह की हानि होने की सम्भावना रहती है। वास्तु शास्त्र अनुसार इसमें आठ महत्वपूर्ण दिशाएँ होती हैं, घर/भवन/दफ्तर या अन्य  निर्माण करते समय जिन्हें ध्यान में रखना बहुत ही आवश्यक है। इन सभी दिशाएँ को पंचतत्वों से परिपूर्ण माना गया है।

वास्तु तनाव व परेशानियों से मुक्ति की एक अच्छी पद्धति हो सकती है। वास्तु की कुछ बातें ध्यान में रखकर आप अपने जिंदगी में परिवर्तन लाने की उम्मीद तो कर सकते हैं। साथ ही आपको ये भी ध्यान रखना होगा की आपमें पूर्णत: परिवर्तन तभी होगा, जब आप स्वयं अपने व्यवहार व कार्यशैली में सकारात्मक परिवर्तन लाएँगे । भारत में प्राचीन काल से ही ज्यादातर भवन निर्माण/गृहनिर्माण वास्तु के अनुसार ही होता आ रहा है, जिससे घर में धन-धान्य व खुशहाली रहती थी। आज के इस दौर और भागदौड़ भरी जिंदिगी में आपाधापी व तनाव ही तनाव है। जिससे मुक्ति के लिए हम तरह-तरह के टोटके व प्रयोग करते हैं। इन्ही प्रयोगों में सबसे बड़ा प्रयोग वास्तु को माना गया है।


वास्तु विज्ञान∕ या वास्तु शास्त्र जिसे भवन निर्माण कला में दिशाओं का विज्ञान कहा, इसे समझाने के लिए सर्वप्रथम दिशाओं के विषय में जानना आवश्यक है। आइये पहले जान लेते हैं इन सभी दिशाओं के बारे में। ये हैं वो 8 दिशाएं : पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, उत्तर-पूर्व, दक्षिण-पूर्व, उत्तर-पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम। 

वास्तु शास्त्र अनुसार दिशा ज्ञान जाने। इनके महत्व को समझें। 
जाने दिशाओं का महत्व :-

  • पूर्व दिशा :- पूर्व दिशा सूर्योदय की दिशा है, जिस तरफ से सूर्य निकलता है। वास्तु अनुसार इस दिशा से सकारात्मक व ऊर्जावान किरणें हमारे घर में प्रवेश करती हैं। गृहस्वामी की लंबी आयु व संतान सुख के लिए घर के प्रवेश द्वार व खिड़की का इस दिशा में होना अत्यंत शुभ माना जाता है। वास्तु अनुसार बच्चों को भी इसी दिशा की ओर मुहं करके पढाई करनी चाहिए। इस दिशा में दरवाजे पर मंगलकारी तोरण लगाना शुभ माना गया है। पूर्व दिशा ऐश्वर्य व ख्याति के साथ सौर ऊर्जा प्रदान करती हैं। अतः भवन निर्माण में इस दिशा में अधिक से अधिक खुला स्थान रखना चाहिए। इस दिशा में भूमि थोड़ी नीची होना चाहिए। दरवाजे और खिडकियां भी पूर्व दिशा में बनाना उपयुक्त रहता हैं। 
  • पश्चिम दिशा :- इस दिशा की भूमि को समस्त भवन की भूमि की तुलना में  थोड़ा ऊँचा होना आपकी सफलता व कीर्ति के लिए शुभ संकेत देता है। वास्तु अनुसार आपका रसोईघर व पाखाना/टॉयलेट इस दिशा में होना चाहिए। पश्चिम दिशा में टायलेट बनाएं यह दिशा सौर ऊर्जा की विपरित दिशा हैं अतः इसे अधिक से अधिक बंद रखना चाहिए। 

  • उत्तर दिशा :- उत्तर दिशा से चुम्बकीय तरंगों का भवन में प्रवेश होता हैं। वास्तु अनुसार इस दिशा में घर के सबसे ज्यादा खिड़की और दरवाजे होना चाहिए। चुम्बकीय तरंगे मानव शरीर में बहने वाले रक्त संचार एवं स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं। अतः स्वास्थ्य की दृष्टि से भी इस दिशा का प्रभाव बहुत अधिक बढ़ जाता हैं।आपके घर की बालकनी और वॉश बेसिन/Wash Besin भी इसी दिशा में होना चाहिए। इस दिशा में वास्तुदोष होने पर धन की हानि व स्वास्थ्य में बाधाएँ आती हैं। 
  • दक्षिण दिशा :- वास्तु अनुसार ऐसा माना जाता है की इस दिशा की भूमि पर भार रखने से गृहस्वामी सुखी, समृद्ध व सैदव निरोगी रहता है। धन को भी इसी दिशा में रखने पर उसमें निरंतर बढ़ोतरी होती है। वास्तु के हिसाब से दक्षिण दिशा में किसी भी प्रकार का खुलापन, शौचालय आदि नहीं होना चाहिए। दक्षिण दिशा को यम की दिशा माना गया है यहां धन रखना उत्तम होता हैं। यम का मतलब मृत्यु के देवता यमराज से होता है। इसलिए इस दिशा में खुलापन, किसी भी प्रकार के गड्ढे और शैचालय आदि किसी भी स्थिति में निर्मित करें। भवन भी इस दिशा में सबसे ऊंचा होना चाहिए। 


जो आपस में जुड़ी हुई दिशा है उनको कोण के नाम से भी जाना जाता है :-

  • उत्तर-पूर्व दिशा :- इस दिशा को "ईशान कोण" के नाम से जाना जाता है तथा इसे जल की दिशा माना गया है। इस दिशा में बोरिंग, स्वीमिंग पूल, पूजास्थल आदि होना चाहिए। घर के मुख्य द्वार का इस दिशा में होना वास्तु की दृष्टि से अत्यंत शुभ माना गया है।
  • दक्षिण-पूर्व दिशा :- इस दिशा को "आग्नेय कोण" के नाम से जाना जाता है इसे अग्नि की दिशा माना गया है। इस दिशा में रसोई, गैस, बॉयलर, या बिजली से जुडी चीजें होना चाहिए। इन सभी के इस दिशा में होने पर वहां रहने वाले लोगों को सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। 

  • उत्तर-पश्चिम दिशा :- इस दिशा को "वायव्य कोण" के नाम से जाना जाता है, इसे वायु/पवन की दिशा माना गया है। इस दिशा में आपको अपना शयनकक्ष/बैडरूम, गैरेज/कार पार्किंग, नौकरों के लिए कमरा आदि होना चाहिए।
  • दक्षिण-पश्चिम दिशा :- इस दिशा को ‘नैऋत्य दिशा’ के नाम से जाना जाता है। परिवार के मुखिया/गृहस्वामी का कक्ष/कमरा इस दिशा में होना चाहिए। इस दिशा में खुलापन अर्थात खिड़की, दरवाजे नहीं लगाने चाहिए। साथ ही घर की सीढ़ियों का निर्माण भी इसी दिशा में होना चाहिएै। अगर आप दुकानदार हैं तो अपनी दूकान में कैश काउंटर, मशीनें आदि आप इस दिशा में रख सकते हैं। वास्तु नियमों में इस दिशा को राक्षस अथवा नैऋत्य दिशा के नाम से जाना गया हैं। 
हमारे समाज में दो तीन तरह के लोग हैं एक वो हैं जो वास्तु को मानते हैं, दूसरे वो हैं जो वास्तु को नहीं मानते और  तीसरे वो लोग हैं जो वास्तु को किसी भी तरह से नकारते ही नहीं हैं और ज्यादा मानते भी नहीं हैं। इसलिए भवन निर्माण से पहले ये जरूर तय करलें की आप इन तीनो में से किस श्रेणी में आते हैं। अगर आप इन्हे मानते हैं तो वास्तु शास्त्र अनुसार दिशा ज्ञान जाने। इनके महत्व को समझें।

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