क्यों मनाया जाता है लोहड़ी का त्यौहार जानें इसका इतिहास और महत्व। Lohri festival history and importance. - LS Home Tech

Sunday, January 12, 2020

क्यों मनाया जाता है लोहड़ी का त्यौहार जानें इसका इतिहास और महत्व। Lohri festival history and importance.

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Why is the festival of Lohri celebrated? Know its history and importance.

क्यों मनाया जाता है लोहड़ी का त्यौहार जानें इसका इतिहास और महत्व।
Why is the festival of Lohri celebrated? Know its history and importance.

भारतवर्ष त्योहारों का देश है, इसमें हर महीने किसी न किसी समुदाय का त्यौहार आता है। कुछ त्यौहार ऐसे हैं जिनकी सारा देश मनाता है वही कुछ त्यौहार ऐसे हैं जिनको एक क्षेत्र विशेष मनाता है। ऐसा ही एक त्यौहार है लोहड़ी का जिसे पंजाबी और हरयाणवी लोग बहुत ही हर्षोल्लास से मनाते हैं। इसे देश के उत्तर भारत में हरियाणा, पंजाब और हिमाचल के कुछ क्षेत्रों में मनाया जाता है। मूल रूप से ये पंजाब और हरियाणा का त्यौहार है। वहीँ पुरे भारत में इस दिन लोग पतंगें उड़ाते हैं। सम्पूर्ण भारत में भिन्न-भिन्न मान्यताओं के साथ लोग इस त्यौहार का आनंद लेते हैं।  

त्यौहार हमारे देश की शान हैं। भारत में बहुत सारे प्रान्त हैं जिनके अपने धर्म, संस्कृति, समुदाय के हिसाब से त्यौहार हैं। जैसा की हम बता चुके हैं की लोहड़ी पंजाब और हरियाणा प्रान्त का खास त्यौहार है, लेकिन पंजाब में इसे बड़े जोर-शोर से मनाया जाता है। पंजाब में लोहड़ी की शुरुआत कई दिन पहले कर दी जाती है। इसी समय में देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नामों से त्यौहार मनाये जाते हैं। यहाँ हम कुछ विशेष त्योहारों का जिक्र कर रहे हैं जो इसी समय मनाये जाते हैं जैसे- उत्तर और मध्य भारत में मकर सक्रांति, दक्षिण भारत में पोंगल का त्यौहार, काइट फेस्टिवल जो की पुरे भारत में ही मनाया जाता है। ये सभी त्यौहार आपसी प्रेम और सौहार्द को बढ़ाने के लिए एक साथ मिलकर मनाये जाते हैं।    

जाने : मकर सक्रांति क्यों मनायी जाती है? 

कब मनाया जाता हैं लोहड़ी का त्यौहार? When is Lohri festival celebrated?
लोहड़ी का त्यौहार पौष/पोह की यानि 13 जनवरी की रात को अगले दिन की सुबह मकर सक्रांति तक मनाया जाता है। मकर सक्रांति पिछले 72 सालों से 14 जनवरी को मनाई जाती रही है लेकिन साल 2020 से इसे 15 जनवरी को अगले 72 सालों तक मनाया जायेगा। उसके अगले 72 सालों में इसे 16 जनवरी को मनाया जायेगा। लोहड़ी का त्यौहार हर साल इसी समय पर मनाया जाता है। साल 2020 में भी यह त्यौहार 13 जनवरी को ही मनाया जायेगा।   

कैसे मनाया जाता हैं लोहड़ी का त्यौहार? How is the festival of Lohri celebrated?
लोहड़ी की तयारी कई दिन पहले ही शुरू हो जाती है, लोग लोहड़ी के दिन लकड़ियां इकठ्ठा करते हैं, फिर उनको शहर या गावं के बिच में किसी खुले स्थान पर इकठ्ठा किया जाता है। खुला स्थान इसलिए चुना जाता है क्यूंकि इसमें बहुत भीड़ शामिल होकर मानती है। उसके बाद रत की इकट्ठा की गई लकड़ियों में आग लगाकर या अलाव जलाकर लोग इसके चारों और गीत गाते हुए नाचते हुए मनाते हैं, लोग ढोल बजाते हैं, खेलते हैं। सभी लोग गीले-शिकवे मिटाकर एक साथ इसका आनद लेते हैं। साथ ही वो लोग इस त्यौहार को तिल और चीनी से बनी रेवड़ी, गुड़ और मूंगफली से बनी गज्जक और मूंगफली आपस में बांटते है। पंजाबियों का विशेष त्यौहार हैं लोहड़ी जिसे वो बड़े धूमधाम से मनाते हैं। नाच-गाना और ढोल तो पंजाबियों की शान होते हैं और इसके बिना उनका कोई भी त्यौहार अधूरा होता है। 

लोहड़ी आने के कई दिनों पूर्व ही छोटे-बड़े लोग लोहड़ी के गीत गाते हैं। लोहड़ी से पन्द्रह दिनों पहले यह गीत गाना शुरू कर दिया जाता हैं। कुछ लोग इन गीतों को घर-घर जाकर गाते हैं। लोहड़ी के इन सभी गीतों में वीर शहीदों को याद किया जाता हैं, जिनमे दुल्ला भट्टी के नाम विशेष रूप से लिया जाता हैं। 

लोहड़ी के त्यौहार उद्देश्य। Festival objectives of Lohri.
जैसा की आप सभी को पता है भारत विविधता भरा देश है चाहे बात इंसानों की करें समुदायों की करें या मौसमी फेरबदल की करें। लोहड़ी का त्यौहार प्रकृति में होने वाले बदलाव के साथ जुड़ा है। इस दिन वर्ष की सबसे बड़ी अंतिम रात होती है। इसके अगले दिन से धीरे-धीरे दिन बढ़ने लगता है। साथ ही उत्तर भारत में इसे किसानों के लिए भी उल्लास भरा समय मन जाता है, क्यूंकि इस वक़्त खेतों में फसलें लहलहाने लगती है। इस वक़्त का मोषम भी काफी सुहावना होता है। खुशाहाली के साथ आपसी प्रेम और भाईचारे को बढ़ाने के उद्देश्य से ही यह त्यौहार मनाया जाता है। 

लोहड़ी के त्यौहार के साथ जुडी कुछ ऐतिहासिक कहानी। 
एक पौराणिक कथा के अनुसार जब प्रजापति दक्ष ने अपनी पुत्री सती के पति महादेव शिव का तिरस्कार किया था, और अपने जमाई/दामाद को यज्ञ में शामिल ना करने से उनकी पुत्री ने अपने आपको को अग्नि में समर्पित कर दिया था। ऐसा मानना है की उसी दिन को एक पश्चाताप के रूप में हर साल लोहड़ी पर्व मनाया जाता हैं। यही कारण है की घर पर विवाहित बेटी को बुलाकर उसे भोजन कराया जाता है और उन्हें कुछ उपहार दिए जाते हैं। आजकल लोग इन उपहारों की जगह विवाहित या अविवाहित कन्याओं को अपने सामर्थ्य अनुसार कुछ दक्षिणा देते हैं। कुछ लोग इस दिन विवाहित महिलाओं को श्रृंगार का सामान भी भेंट करते हैं। 

लोहड़ी को मनाने के पीछे एक और एतिहासिक कथा भी हैं, यह बात अकबर के शासनकाल के समय की हैं, उन दिनों दुल्ला भट्टी पंजाब प्रान्त का सरदार था, जिसकी उस वक़्त बहुत धाक होती थी। दुल्ला भट्टी को पंजाब का नायक कहा जाता था और आज भी उनके सम्मान में लोग बहुत से गीत गाते हैं। उन दिनों संदलबार नामक एक जगह थी, जो की अब पाकिस्तान का हिस्सा हैं। वहाँ पर लड़कियों की बाजारी/खरीद फरोख्त होती थी, और लड़कियों को वहां कहीं से उठाकर बंदी बनाकर रखा जाता था। तब दुल्ला भट्टी ने  उस जगह से बहुत सारी लड़कियों को उस चंगुल से बचाया था, और सम्मानपूर्वक उनकी शादी करवाकर उनको सम्मानित जीवन दिया था। । दुल्ला भट्टी की इस विजय के दिन को लोहड़ी के गीतों में गाया जाता हैं और दुल्ला भट्टी को याद किया जाता हैं। 

लोहड़ी का आधुनिक रूप कैसा है? How is the modern form of Lohri?
आज भी पंजाब और हरियाणा में लोहड़ी की धूम वैसी ही होती हैं जैसी शदियों से चली आ रही है। आजकल लोहड़ी के त्यौहार ने कुछ हद तक जश्न और पार्टी का रूप ले लिया हैं। अब लोग आपसे में गले मिलने के बजाय मोबाइल और इन्टरनेट के जरिये एक दुसरे को बधाई ज्यादा देते हैं। लोहड़ी के त्यौहार को अपने-अपने अंदाज़ में पुरे उल्लास से मनाया जाता हैं। आज भारत के बहुत से पंजाबी लोग विदेशों में भी बसे हुए हैं, इसलिये लोहड़ी  को पंजाबी बाहुलय देशों में धूमधाम से मनाया जाता है। विदेशों में खासकर कनाडा में लोहड़ी को हर्षोल्लास से मनाया जाता है।  

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