आखिर क्यों जम्मू-कश्मीर के लोग धारा 370 हटाने के खिलाफ है, ये हैं मूल कारण। why J&K people are against rejection of Article 370? - LS Home Tech

Tuesday, February 19, 2019

आखिर क्यों जम्मू-कश्मीर के लोग धारा 370 हटाने के खिलाफ है, ये हैं मूल कारण। why J&K people are against rejection of Article 370?

आये दिन जम्मू-और कश्मीर में हर दिन कोई न कोई नई घटना सुनने को मिलती है, हर रोज न जाने कितनी मासूम जाने जाती है। कितने जवान शहीद होते है। आखिर ये त्रासदी कब तक हम सहन करेंगे। क्यों न इस विवाद को ही मिटा दिया जाए इस राज्य से धारा 370 को खत्म करके। We The Citizen नाम की एक संस्था ने सुप्रीम कोर्ट में इस धारा को हटाने के लिए याचिका दायर की हुई है, जिस पर सुनवाई चल रही है। लेकिन दूसरी तरफ कश्मीर की जनता कुछ राजनैतिक दल इसे हटाने के विरोध में है, ऐसा क्या है इस धारा 370 में जो वहां के लोग इसे हटाने नही देना चाहते, आखिर क्या मांग है जम्मू-कश्मीर के लोगों की भारत सरकार से? 
why J&K people are against rejection of Article 370?

ये भी पढ़ें :

 पहले जान लेते है कश्मीर विवाद का मूल कारण क्या है? 
भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर का मुद्दा दोनों देशों की आजादी के समय से ही चला आ रहा है। अंग्रेजी हुकूमत की समाप्ति के साथ ही जम्मू एवं कश्मीर राज्य भी 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ था। उस समय यहां के तात्कालिक राजा हरि सिंह ने फैसला किया कि वे भारत या पाकिस्तान किसी भी देश में शामिल नही होंगे और एक स्वतंत्र राष्ट्र की तरह अलग ही रहेंगे। 

कुछ ही समय बिता था की राजा हरि सिंह का यह फैसला उस समय गलत सिद्ध हो गया जब 20 अक्टूबर, 1947 को पाकिस्तान समर्थित "आजाद कश्मीर सेना" ने जम्मू-कश्मीर के पश्चिमी भाग पर आक्रमण कर दिया। उन्होंने बाज़ारो में लूटपाट शुरू कर दी घरों में चोरी और आगजनी करने के साथ ही महिलाओं को भी अगवा कर लिया। पाकिस्तान समर्थित लोग इसी तरह की तबाही मचाते हुए पूर्वी कश्मीर की तरफ बढ़ रहे थे, तब महाराजा हरीसिंह ने जवाहरलाल नेहरु से सैन्य मदद मांगी थी। और फिर 26 अक्टूबर,1947 को दोनों (भारत और जम्मू-कश्मीर रियासत) के बीच विलय का समझौता हुआ था, जिस समझौते के तहत इस राज्य के तीन विषयों "रक्षा, विदेशी मामले और संचार" को भारत के हवाले कर दिया गया था। 

इस समझौते के बाद भारत के संविधान में अनुच्छेद 370 को जोड़ा गया था, जिसमे स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि जम्मू कश्मीर से सम्बंधित राज्य उपबंध(इस सम्बन्ध में नए नियम) केवल अस्थायी हैं स्थायी नही हैं। 

कश्मीर विवाद की मूल जड़ यह है कि वर्तमान में भी जम्मू-कश्मीर के शासक अनुच्छेद 370 को स्थायी रूप देना चाहते हैं, ताकि उन्हें मिला हुआ विशेष राज्य का दर्जा बरक़रार रहे। इसलिए 26 जून 2000 को एक ऐतिहासिक घटनाक्रम में जम्मू-कश्मीर विधान सभा ने "राज्य स्वायतता समिति" की सिफारिसों को स्वीकार कर लिया था। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में जम्मू-कश्मीर राज्य को और स्वायतता देने की बात कही थी। यहाँ की ज्यादातर जनता इस समिति की रिपोर्ट को लागू करवाने के लिए बहुत लम्बे समय से आन्दोलन कर रही है। 

राज्य स्वायतता समिति द्वारा की गई मुख्य मांगे। 
  1. संविधान के अनुच्छेद 370 में उल्लेखित शब्द “अस्थायी” की जगह “स्थायी” लिखा जाये ताकि जम्मू-कश्मीर को दिया गया विशेष राज्य का दर्जा हमेशा के लिए स्थाई हो जाये। 
  2. अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) को जम्मू-कश्मीर राज्य पर लागू नही किया जाना चाहिए। 
  3. राज्य पर बाहरी आक्रमण या आंतरिक आपातकालीन स्थिति में जम्मू-कश्मीर राज्य विधानसभा का निर्णय ही अंतिम व मान्य निर्णय हो। 
  4. भारत के निर्वाचन आयोग की जम्मू-कश्मीर राज्य में कोई भूमिका न हो। 
  5. राज्य के राज्यपाल को सदर-ए-रियासत और मुख्यमंत्री को वजीर-ए-आजम बुलाया जाये। 
  6. जम्मू-कश्मीर पर संसद और राष्ट्रपति की भूमिका को नाममात्र का कर दिया जाये।
  7. जम्मू-कश्मीर राज्य में "अखिल भारतीय सेवाओं" जैसे IAS, IPS और IFS का कोई स्थान न हो। 
  8. <
  9. भारतीय संविधान में जम्मू-कश्मीर के लिए मूल अधिकारों का एक अलग अध्याय होना चाहिए ।  
  10. राज्य में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन-जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए कोई विशेष प्रावधान न हो।  आपको बतादें कि जम्मू-कश्मीर के मुसलमानों को अल्पसंख्यक माना जाता है, जिसके तहत उन्हें बहुत सी सुविधाएँ भारत सरकार द्वारा दी जा रही हैं। 
  11. अंतरराज्जीय नदियों एवं नदी घाटियों के सम्बन्ध में केंद्र के निर्णय जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होने चाहिए।
  12. भारत के सुप्रीम कोर्ट/उच्चतम न्यायालय में जम्मू-कश्मीर राज्य से सम्बंधित कोई विशेष सुनवाई न हो। 
  13. राज्य उच्च न्यायालय के दीवानी एवं फौजदारी मुकदमों के निर्णय के विरुद्ध सुनवाई करने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट/उच्चतम न्यायालय को न हो। 
  14. भारतीय संसद को जम्मू-कश्मीर राज्य के संविधान और प्रक्रिया में संशोधन का किसी भी प्रकार का कोई अधिकार न हो। 
राज्य स्वायतता समिति ने जब इन सभी सिफारिशों को भारत सरकार के मंत्रिमंडल के पास 14 जुलाई 2000 को अनुमोदन के लिए भेजा था। तब केंद्र सरकार ने इस समिति की सिफारिसों को यह कहकर नकार दिया कि ये सभी सिफरिसें लोगों की सहिष्णुता और देश की एकता एवं अखंडता के सिद्धांत के बिलकुल विपरीत हैं। केंद्र द्वारा इन सिफारिसों को मानने से मना कर देने के कारण इस प्रदेश में कुछ अलगाववादी नेताओं द्वारा युवाओं को दिशा भ्रमित कर/पैसे का लालच देकर भारत विरोधी गतिविधियों, आतंकबाद और पत्थरबाजी जैसी गतिविधियों में शामिल कर उनसे दंगे फसाद करवाए जा रहे हैं। वर्तमान समय की परिस्थितियों को देखते हुए भारत सरकार को अनुच्छेद 370 को जम्मू-कश्मीर पूरी तरह से ख़त्म कर देना चाहिए, क्यूंकि जो आज की परिस्थितियां है उसको देखते हुए इस अनुच्छेद को हटाने की बहुत जरुरत है। साथ ही अलगाववादियों से भी निपटने के लिए कुछ कठोर कानून बनाये जाने की जरुरत सरकार के सामने है। इस बारे में आपकी क्या राय है कृपया कमेंट करके हमे जरूर बताएं। 

दोस्तों आशा करता हूँ आपको ये आर्टिकल पसंद आया होगा। अगर हमारे द्वारा दी गई जानकरी अच्छी लगी तो इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा लोगो तक Share करे तथा इस आर्टिकल संबंधी अगर किसी का कोई भी सुझाव या सवाल है तो वो हमें जरूर लिखें।
Join us :
My Facebook :  Lee.Sharma

हमारे द्वारा लिखित और आर्टिकल यहाँ पढ़ें :



No comments:

Post a Comment

Advertisement

Featured Post

5G टेक्नोलॉजी के फायदे और नुकसान। Advantages and Disadvantages of 5G Technology.

जैसे-जैसे टेक्नोलॉजी का विकास होता जा रहा है, टेक्नोलॉजी हमारे जीवन को समृद्ध बना रही है, इसके बहुत से फायदे होने के साथ ही कुछ नुकसान भी ...

Advertisement

Contact Form

Name

Email *

Message *

Wikipedia

Search results

Post Top Ad